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ईयर ऑफ मिलेट्स

IYoM: मिलेट्स (MILLETS) यानी बाजरा को अब गरीब का भोजन नहीं, सुपर फूड कहिये

IYoM: मिलेट्स (MILLETS) यानी बाजरा को अब गरीब का भोजन नहीं, सुपर फूड कहिये

दुनिया को समझ आया बाजरा की वज्र शक्ति का माजरा, 2023 क्यों है IYoM

पोषक अनाज को भोजन में फिर सम्मान मिले - तोमर भारत की अगुवाई में मनेगा IYoM-2023 पाक महोत्सव में मध्य प्रदेश ने मारी बाजी वो कहते हैं न कि, जब तक योग विदेश जाकर योगा की पहचान न हासिल कर ले, भारत इंडिया के तौर पर न पुकारा जाने लगे, तब तक देश में बेशकीमती चीजों की कद्र नहीं होती। कमोबेश कुछ ऐसी ही कहानी है देसी अनाज बाजरा की।

IYoM 2023

गरीब का भोजन बताकर भारतीयों द्वारा लगभग त्याज्य दिये गए इस पोषक अनाज की महत्ता विश्व स्तर पर साबित होने के बाद अब इस अनाज
बाजरा (Pearl Millet) के सम्मान में वर्ष 2023 को इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स (आईवायओएम/IYoM) के रूप में राष्ट्रों ने समर्पित किया है।
इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स (IYoM) 2023 योजना का सरकारी दस्तावेज पढ़ने या पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए, यहां क्लिक करें
मिलेट्स (MILLETS) मतलब बाजरा के मामले में भारत की स्थिति, लौट के बुद्धू घर को आए वाली कही जा सकती है। संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय पोषक-अनाज वर्ष घोषित किया है। पीआईबी (PIB) की जानकारी के अनुसार केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा जुलाई मासांत में आयोजित किया गया पाक महोत्सव भारत की अगुवाई में अंतरराष्ट्रीय पोषक-अनाज वर्ष (IYoM)- 2023 लक्ष्य की दिशा में सकारात्मक कदम है। पोषक-अनाज पाक महोत्सव में कुकरी शो के जरिए मिलेट्स (MILLETS) यानी बाजरा, अथवा मोटे अनाज पर आधारित एवं मिश्रित व्यंजनों की विविधता एवं उनकी खासियत से लोग परिचित हुए। आपको बता दें, मिलेट (MILLET) शब्द का ज्वार, बाजरा आदि मोटे अनाज संबंधी कुछ संदर्भों में भी उपयोग किया जाता है। ऐसे में मिलेट के तहत बाजरा, जुवार, कोदू, कुटकी जैसी फसलें भी शामिल हो जाती हैं। पीआईबी द्वारा जारी की गई सूचना के अनुसार महोत्सव में शामिल केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने मिलेट्स (MILLETS) की उपयोगिता पर प्रकाश डाला।

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अपने संबोधन में मंत्री तोमर ने कहा है कि, “पोषक-अनाज को हमारे भोजन की थाली में फिर से सम्मानजनक स्थान मिलना चाहिए।” उन्होंने जानकारी में बताया कि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय पोषक-अनाज वर्ष घोषित किया है। यह आयोजन भारत की अगु़वाई में होगा। इस गौरवशाली जिम्मेदारी के तहत पोषक अनाज को बढ़ावा देने के लिए पीएम ने मंत्रियों के समूह को जिम्मा सौंपा है। केंद्रीय कृषि मंत्री तोमर ने दिल्ली हाट में पोषक-अनाज पाक महोत्सव में (IYoM)- 2023 की भूमिका एवं उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि, अंतरराष्ट्रीय बाजरा वर्ष (IYoM)- 2023 के तहत केंद्र सरकार द्वारा स्थानीय, राज्य, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनेक कार्यक्रमों के आयोजन की विस्तृत रूपरेखा तैयार की गई है।

बाजरा (मिलेट्स/MILLETS) की वज्र शक्ति का राज

ऐसा क्या खास है मिलेट्स (MILLETS) यानी बाजरा या मोटे अनाज में कि, इसके सम्मान में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पूरा एक साल समर्पित कर दिया गया। तो इसका जवाब है मिलेट्स की वज्र शक्ति। यह वह शक्ति है जो इस अनाज के जमीन पर फलने फूलने से लेकर मानव एवं प्राकृतिक स्वास्थ्य की रक्षा शक्ति तक में निहित है। जी हां, कम से कम पानी की खपत, कम कार्बन फुटप्रिंट वाली बाजरा (मिलेट्स/MILLETS) की उपज सूखे की स्थिति में भी संभव है। मूल तौर पर यह जलवायु अनुकूल फसलें हैं।

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शाकाहार की ओर उन्मुख पीढ़ी के बीच शाकाहारी खाद्य पदार्थों की मांग में उल्लेखनीय रूप से वृद्धि हो रही है। ऐसे में मिलेट पॉवरफुल सुपर फूड की हैसियत अख्तियार करता जा रहा है। खास बात यह है कि, मिलेट्स (MILLETS) संतुलित आहार के साथ-साथ पर्यावरण की सुरक्षा में भी असीम योगदान देता है। मिलेट (MILLET) या फिर बाजरा या मोटा अनाज बी-कॉम्प्लेक्स विटामिन और खनिजों जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों का भंडार है।

त्याज्य नहीं महत्वपूर्ण हैं मिलेट्स - तोमर

आईसीएआर-आईआईएमआर, आईएचएम (पूसा) और आईएफसीए के सहयोग से आयोजित मिलेट पाक महोत्सव के मुख्य अतिथि केंद्रीय कृषि मंत्री तोमर थे। अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि, “मिलेट गरीबों का भोजन है, यह कहकर इसे त्याज्य नहीं करना चाहिए, बल्कि इसे भारत द्वारा पूरे विश्व में विस्तृत किए गए योग और आयुर्वेद के महत्व की तरह प्रचारित एवं प्रसारित किया जाना चाहिए।” “भारत मिलेट की फसलों और उनके उत्पादों का अग्रणी उत्पादक और उपभोक्ता राष्ट्र है। मिलेट के सेवन और इससे होने वाले स्वास्थ्य लाभों के बारे में जागरूकता प्रसार के लिए मैं इस प्रकार के अन्य अनेक आयोजनों की अपेक्षा करता हूं।”

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मिलेट और खाद्य सुरक्षा जागरूकता

मिलेट और खाद्य सुरक्षा संबंधी जागरूकता के लिए होटल प्रबंधन केटरिंग तथा पोषाहार संस्थान, पूसा के विद्यार्थियों ने नुक्कड़ नाटक प्रस्तुत किया। मुख्य अतिथि तोमर ने मिलेट्स आधारित विभिन्न व्यंजनों का स्टालों पर निरीक्षण कर टीम से चर्चा की। महोत्सव में बतौर प्रतिभागी शामिल टीमों को कार्यक्रम में पुरस्कार प्रदान कर प्रोत्साहित किया गया।

मध्य प्रदेश ने मारी बाजी

मिलेट से बने सर्वश्रेष्ठ पाक व्यंजन की प्रतियोगिता में 26 टीमों में से पांच टीमों को श्रेष्ठ प्रदर्शन के आधार पर चुना गया था। इनमें से आईएचएम इंदौर, चितकारा विश्वविद्यालय और आईसीआई नोएडा ने प्रथम तीन क्रम पर स्थान बनाया जबकि आईएचएम भोपाल और आईएचएम मुंबई की टीम ने भी अंतिम दौर में सहभागिता की।

इनकी रही उपस्थिति

कार्यक्रम में केंद्रीय राज्यमंत्री कैलाश चौधरी, कृषि सचिव मनोज आहूजा, अतिरिक्त सचिव लिखी, ICAR के महानिदेशक डॉ. त्रिलोचन महापात्र और IIMR, हैदराबाद की निदेशक रत्नावती सहित अन्य अधिकारी एवं सदस्य उपस्थित रहे। इस दौरान उपस्थित गणमान्य नागरिकों की सुपर फूड से जुड़ी जिज्ञासाओं का भी समाधान किया गया। महोत्सव के माध्यम से मिलेट से बनने वाले भोजन के स्वास्थ्य एवं औषधीय महत्व संबंधी गुणों के बारे में लोगों को जागरूक कर इनके उपयोग के लिए प्रेरित किया गया। दिल्ली हाट में इस महोत्सव के दौरान पोषण के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां प्रदान की गईं। इस विशिष्ट कार्यक्रम में अनेक स्टार्टअप ने भी अपनी प्रस्तुतियां दीं। 'छोटे पैमाने के उद्योगों व उद्यमियों के लिए व्यावसायिक संभावनाएं' विषय पर आधारित चर्चा से भी मिलेट संबंधी जानकारी का प्रसार हुआ। अंतर राष्ट्रीय बाजरा वर्ष (IYoM)- 2023 के तहत नुक्कड़ नाटक तथा प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिताओं जैसे कार्यक्रमों के तहत कृषि मंत्रालय ने मिलेट के गुणों का प्रसार करने की व्यापक रूपरेखा बनाई है। वसुधैव कुटुंबकम जैसे ध्येय वाक्य के धनी भारत में विदेशी अंधानुकरण के कारण शिक्षा, संस्कृति, कृषि कार्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। अंतरराष्ट्रीय पोषक-अनाज वर्ष (IYoM)- 2023 जैसी पहल भारत की पारंपरिक किसानी के मूल से जुड़ने की अच्छी कोशिश कही जा सकती है।
IYoM: भारत की पहल पर सुपर फूड बनकर खेत-बाजार-थाली में लौटा बाजरा-ज्वार

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भारत की पहल से यूएन में हुआ पारित

दो साल में 146% बढ़ी बाजरा की मांग

कुकीज, चिप्स का बढ़ रहा बाजार

“अयं बन्धुरयं नेति गणना लघुचेतसाम् । उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ॥” महा उपनिषद सहित कई ग्रन्थों में लिपिबद्ध महा कल्याण की भावना से परिपूर्ण यह महावाक्य भारतीय संसद भवन में भी सुषोभित है। इसका अर्थ है कि, यह अपना बन्धु है और यह अपना नहीं है, इस तरह का हिसाब छोटे चित्त वाले करते हैं। उदार हृदय वालों के लिए तो (सम्पूर्ण) धरती ही कुटुंब है। ”धरती ही परिवार है।” सनातन धर्म के मूल संस्कार एवं इस महान विचारधारा के प्रसार के तहत भारत ने अंतर राष्ट्रीय स्तर पर अन्न के प्रति भारतीय मनीषियों द्वारा प्रदत्त सम्मान के प्रति भी दुनिया का ध्यान आकृष्ट किया है। धरती मेरा कुटुंब है, प्राकृतिक कृषि से उदर पोषण कृषक का दायित्व है।, इन विचारों से भले ही दुनिया पहली बार परिचित हो रही हो, लेकिन भारत में यह पंक्तियां, महज विचार न होकर सनातनी परंपरा का अनिवार्य अंग हैं। भारत में कृषि का चलन बहुत पुराना है। हालांकि अंग्रेजी नाम वाली पैक्ड फूड डाइट (Packed Food Diet) के बढ़ते चलने के कारण युवा वर्ग अब इन यूनिवर्सल थॉट्स (सार्वभौमिक विचार) से दूर भी होता जा रहा है। कोदू, कुटकी, जौ, ज्वार, बाजरा जैसे पारंपरिक अनाज की पहचान को आज की पीढ़ी, हिंदी के अंकों, अक्षरों की तरह भुलाती जा रही है। संभव है, कुछ दिन में कॉर्न, सीड्स जैसे नामों के आगे मक्का, बीज जैसे नाम भी विस्मृत हो जाएं!

भारत सरकार की पहल

प्रकृति प्रदत्त अनाज की किस्मों में निहित जीवन मूल्यों की ओर ध्यान आकृष्ट कराने, भारत सरकार ने साल 2018 को ईयर ऑफ मिलेट्स के रूप में मनाने का निर्णय लेकर, देसी अनाज की किस्मों की ओर दुनिया का ध्यान आकृष्ट कराया। ईयर ऑफ मिलेट्स के तहत सरकारी स्तर पर मोटे अनाज की किस्मों की खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने तमाम प्रोत्साहन योजनाएं संचालित की गईं।

अब IYoM

इसके बाद
संयुक्त राष्ट्र (United Nations) को, अनाज की बिसरा दी गईं किस्मों की ओर लौटकर, प्राकृतिक खेती से दोबारा जुड़ने का भारत का यह तरीका पसंद आया, तो वर्ष 2023 को अंतर राष्ट्रीय स्तर पर इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स - आईवायओएम (International Year of Millets - IYoM) अर्थात अंतरराष्ट्रीय पोषक-अनाज वर्ष के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया।
इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स (IYoM) 2023 योजना का सरकारी दस्तावेज पढ़ने या पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए, यहां क्लिक करें
नैचुरल फार्मिंग (Natural Farming) या प्राकृतिक खेती के दौर में ज्वार, बाजरा, कोदू, कुटकी जैसे मोटे अनाज अब मिलेट्स (MILLET) के रूप में सुपर फूड बनकर धीरे-धीरे फिर से चलन में लौट रहे हैं। क्या आप इक्षु, उर्वास के बारे में जानते हैं। इक्षु अर्थात गन्ना एवं उर्वास यानी ककड़ी, वे नाम हैं जो मिलेट्स (बाजरा, ज्वार) की तरह समय के साथ नाम के रूप में अपनी पहचान बदल चुके हैं।

इस बदलाव की वजह क्या है ?

आखिर क्या वजह है कि दुनिया को अब मोटा अनाज पसंद आने लगा है, करते हैं इस बात की पड़ताल। मोटे अनाज (मिलेट्स/MILLETS) के धरती, प्रकृति और मानव स्वास्थ्य से जुड़े फायदों पर अनुसंधान करने वाले भारत के कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय एवं कृषि केंद्रों के शोध अंतर राष्ट्रीय स्तर पर विचार का विषय हैं। इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट्स (International Crops Research Institute for the Semi-Arid Tropics) भी मिलेट्स की उपयोगिता पर रिसर्च करने में व्यस्त हैं। भारत की ही तरह विश्व के तमाम कृषि अनुसंधान केंद्रों का भी यही मानना है कि, बाजरा, ज्वार, पसई का चावल जैसे मोटे अनाज अब वक्त की जरूरत बन चुके हैं। इनके मुताबिक अनाज की इन किस्मों को खाद्य उपयोग के चलन में लाने के लिए अंतर राष्ट्रीय स्तर पर IYoM जैसे साझा सहयोग की जरूरत है। मतलब मोटे अनाज की किस्मों की न केवल व्यापक स्तर पर खेती की जरूरत है, बल्कि उपजे अनाज के लिए विस्तृत बाजार नेटवर्क भी अपरिहार्य है। कृषि प्रधान देश भारत के नेतृत्व में आयोजित यूएन के IYoM 2023 मिशन के तहत लोगों को मोटे अनाज के लाभों के बारे में जागरूक किया जाएगा। इस तारतम्य के तहत हाल ही में भारत में मिलेट्स पाक उत्सव आयोजित किया गया। इसमें मोटे अनाज से बनने वाले व्यंजनों एवं उसके स्वास्थ्य लाभों के बारे में लोगों को जागरूक कर उनकी जिज्ञासाओं का समाधान किया गया।


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मिलेट्स फूड मेले में लोगों की मौजूदगी ने साबित किया कि, लोग मोटे अनाज के आहार के प्रति आकर्षित हो रहे हैं। इससे पता चलता है कि, मिलेट्स फिर चलन में लौट रहे हैं। मोटे अनाज की फसलों के लिए इसे एक सार्थक संकेत कहा जा सकता है।

मोटे अनाज की कृषि उपयोगिता

मोटा अनाज या बाजरा (मिलेट्स/MILLETS) आम तौर पर किसी भी किस्म की गुणवत्ता वाली मिट्टी में पनप सकता है। इसके लिए किसी खास किस्म की खाद, या रसायन आदि की भी जरूरत नहीं होती। तुलनात्मक रूप से इन फसलों को कीटनाशक की भी आवश्यकता नहीं है।

इसलिए स्मार्ट फूड

मोटा अनाज तेजी से चलन में लौट रहा है। इसमें खेत, जमीन, पर्यावरण के साथ ही मानव स्वास्थ्य से जुड़े लाभ ही लाभ समाहित हैं। ये अनाज धरती, किसान और इंसान के लिए लाभकारी होने के कारण इन्हें सुपर फूड कहा जा रहा है। और अधिक खासियतों की यदि बात करें, तो मोटे अनाज को उपजाने के लिए किसान को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं पड़ती। यह अन्न किस्में तेज तापमान में भी अपना वजूद कायम रखने में सक्षम हैं। मिलेट्स फार्मिंग किसानों के लिए इसलिए भी अच्छी है, क्योंकि दूसरी फसलों के मुकाबले इनकी खेती आसान है। इसके अलवा कीट पतंगों का भी मोटे अनाज की फसल पर कम असर होता है। कीट जनित रोगों से भी ये बचे रहते हैं। मोटे अनाज (मिलेट्स/MILLETS) मानव के स्वास्थ्य के लिए काफी सेहतकारी हैं। मिलेट्स में पौष्टिक तत्व प्रचुर मात्रा में मौजूद रहता है। अनुसंधान के मुताबिक, बाजरे से मधुमेह यानी शुगर को नियंत्रित किया जा सकता है। कोलेस्ट्रॉल (cholesterol) लेवल में भी इससे सुधार होता है। कैल्शियम, जिंक और आयरन की कमी को भी बाजरा दूर करता है।


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स्वास्थ्य विशेषज्ञ भी मोटे अनाज को आहार में शामिल करने की सलाह लोगों को दे रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार भारत में डायबिटीज के लगभग 8 करोड़ मरीज हैं। देश में 33 लाख से अधिक बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। इनमें से आधे से अधिक गंभीर रूप से कुपोषित श्रेणी में आते हैँ। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) कुपोषण से मुक्ति के लिए मिलेट्स रिवोल्यूशन (Millets Revolution) की दरकार जता चुके हैं। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के अनुसार पौष्टिक आहार और अच्छे स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिए भारत को बाजरा क्रांति (Millets Revolution) पर काम करने की आवश्यकता है। विशेषज्ञों की मानें तो भारत के लिए मिलेट्स रिवोल्यूशन इसलिए कठिन नहीं है, क्योंकि मक्के की रोटी, बाजरे के टिक्कड़, खीर आदि के रूप में मोटा अनाज पीढ़ियों से भारतीय थाली का अनिवार्य हिस्सा रहा है। एक तरह से जौ और बाजरा को मानव जाति के इतिहास में खाद्योपयोग में आने वाला प्राथमिक अन्न कहा जा सकता है। सिंधु घाटी की सभ्यता संबंधी अनुसंधानों में बाजरा की खेती के प्रमाण प्राप्त हुए हैं। भारत के 21 राज्यों में मोटे अनाज की खेती की जाती है। ये मोटे अनाज राज्यों में प्रचलित मान्यताओं के अनुसार अपना स्थान रखते हैं। राज्यों में मोटे अनाजों (मिलेट्स/MILLETS) को उनकी उपयोगिता एवं जरूरत के हिसाब से उपजाया जाता है। गौरतलब है कि मोटे अनाज प्रकारों से जुड़ी अपनी-अपनी मान्यताएं भी हैं।

भारत में बाजरा पैदावार

भारत प्रतिवर्ष 1.4 करोड़ टन बाजरे की पैदावार करता है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा बाजरा उत्पादक देश माना जाता है। हालांकि बीते 50 सालों में इससे जुड़ी कृषि उत्पादक भूमि घटकर कम होती गई है। यह भूमि 3.8 करोड़ हेक्टेयर से घटकर मात्र 1.3 करोड़ हेक्टेयर के आसपास रह गई है। 1960 के दशक में उत्पन्न बाजरा की तुलना में आज बाजरा की पैदावार कम हो गई है। तब भारत खाद्य सहायता पर निर्भर था। भारत को उस समय देशवासियों के पोषण के लिए अनाज का आयात करना पड़ता था।


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क्यों पिछड़ा सुपर फूड

खाद्य मामलों में आत्मनिर्भरता हासिल करने एवं कुपोषण पर लगाम कसने के लिए भारत में हरित क्रांति हुई। इसके परिणाम स्वरूप 60 के दशक के उपरांत भारत में गेहूं एवं चावल की अधिक पैदावार वाली किस्मों को खेत में अधिक स्थान मिलता गया। भारत में 1960 और 2015 के बीच गेहूं का उत्पादन तीन गुना से भी अधिक हुआ। चावल के उत्पादन में इस दौरान 8 सौ फीसद वृद्धि हुई। गेहूं, चावल का दायरा जहां इस कालखंड में बढ़ता गया वहीं बाजरा, ज्वार जैसे मोटे अनाज की पैदावार का क्षेत्रफल सिमटता गया। गेहूं अनाज को प्रोत्साहन देने के चक्कर में बाजरा और उसके जैसे दूसरे पारंपरिक ताकतवर मोटे अनाज की अन्य किस्मों की उपेक्षा हुई। नतीजतन मिलेट्स की पैदावार कम होती गई। दरअसल बाजरा और मोटे अनाज को पकाना सभी को नहीं आता एवं उसको खाद्य उपयोगी बनाने के लिए भी काफी समय लगता है। इस कारण दशकों से इनका बेहद कम उपयोग किया जा रहा है। बाजार ने भी मोटे अनाज की उपेक्षा की है।

समझ आई उपयोगिता

प्राकृतिक अनाज आहार के प्रति जागरूक होती आज की पीढ़ी को अब समय के साथ-साथ मोटे अनाज की उपयोगिता समझ आ रही है। भुलाई गई अनाज की इन किस्मों को चलन में वापस लाने के लिए चावल और गेहूं की फसलों की ही तरह सरकारों को खास ध्यान देना होगा। भारतीय कृषि वैज्ञानिक ज्वार, बाजरा जैसे मोटे अनाजों की किस्मों पर व्यापक शोध कर रहे हैं। इनके द्वारा दिए गए सुझावों से किसानों को लाभ भी मिल रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले दो सालों के दौरान बाजरा की मांग में उल्लेखनीय रूप से 146 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है।

बाजरा में बाजरा

बाजार में अब बाजरा जैसे मोटे अनाज से बने तमाम प्रोडक्ट्स उपलब्ध हैं। मिलेट का आटा, कुकीज, चिप्स आदि पैक्ड आइटम्स की खुदरा बाजार, सुपर मार्केट एवं ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर खासी डिमांड है।


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पीडीएस प्रोसेस

भारत में पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम - पीडीएस (Public Distribution Service - PDS) यानी सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से हितग्राहियों को 1 रुपया प्रति किलो की दर से बाजरा प्रदान किया जा रहा है। कुछ राज्यों में मोटे अनाज से बने व्यजनों को दोपहर आहार (मिड डे मील - Mid Day Meal Scheme) योजना के तहत परोसा जा रहा है। मतलब सरकार और बाजार को बाजरे की मार्केट वैल्यू पता लगने पर इसकी हैसियत लगातार बढ़ती जा रही है। गरीब का भोजन बताकर किनारे कर दिया गया बाजरा जैसा ताकतवर अनाज, सुपर फूड मिलेट्स (MILLETS) के रूप में फिर नई पहचान बना रहा है।
भारत सरकार ने मोटे अनाजों को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किये तीन नए उत्कृष्टता केंद्र

भारत सरकार ने मोटे अनाजों को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किये तीन नए उत्कृष्टता केंद्र

भारत दुनिया में मोटे अनाजों (Coarse Grains) का सबसे बड़ा उत्पादक देश है, इसलिए भारत इस चीज के लिए तेजी से प्रयासरत है कि दुनिया भर में मोटे अनाजों की स्वीकार्यता बढ़े। 

इसको लेकर भारत ने साल 2018 को मिलेट्स ईयर के तौर पर मनाया था और साथ ही अब साल 2023 को संयुक्त राष्ट्र संघ इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स (आईवायओएम/IYoM-2023) के तौर पर मनाएगा। इसका सुझाव भी संयुक्त राष्ट्र (United Nations) संघ को भारत सरकार ने ही दिया है, जिस पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने सहमति जताई है।

इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स (IYoM) 2023 योजना का सरकारी दस्तावेज पढ़ने या पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए, यहां क्लिक करें देश के भीतर मोटे अनाजों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से भारत सरकार ने देश में तीन नए उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किये हैं, जो देश में मोटे अनाजों के उत्पादन को बढ़ाने में सहायक होंगे, साथ ही ये उत्कृष्टता केंद्र देश में मोटे अनाजों के प्रति लोगों को जागरूक भी करेंगे।

  • इन तीन उत्कृष्टता केंद्रों में से पहला केंद्र बाजरा (Pearl Millet) के लिए  चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार (Chaudhary Charan Singh Haryana Agricultural University, Hisar) में स्थापित किया गया है। यह केंद्र पूरी तरह से बाजरे की खेती के लिए, उसके उत्पादन के लिए तथा उसके प्रचार प्रसार के लिए बनाया गया है, इसके साथ ही यह केंद्र लोगों के बीच बाजरे के फायदों को लेकर जागरूक करने का प्रयास भी करेगा।
  • इसी कड़ी में सरकार ने दूसरा उत्कृष्टता केंद्र भारतीय कदन्न अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद (Indian Institute of Millets Research (IIMR)) में स्थापित किया है। यह केंद्र ज्वार (Jowar) की खेती को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया है। यह केंद्र देश भर में ज्वार की खेती के प्रति लोगों को जागरूक करेगा, साथ ही लोगों के बीच ज्वार से होने वाले फायदों को लेकर जागरूकता फैलाएगा।
  • इनके साथ ही तीसरा उत्कृष्टता केंद्र कृषि विज्ञान विश्विद्यालय, बेंगलुरु (University of Agricultural Sciences, GKVK, Bangalore) में स्थापित किया गया है। यह उत्कृष्टता केंद्र छोटे मिलेट्स जैसे कोदो, फॉक्सटेल, प्रोसो और बार्नयार्ड इत्यादि के उत्पादन और प्रचार प्रसार के लिए बनाया गया है।
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मोटे अनाजों में मुख्य तौर पर ज्वार, बाजरा, मक्का, जौ, फिंगर बाजरा और अन्य कुटकी जैसे कोदो, फॉक्सटेल, प्रोसो और बार्नयार्ड इत्यादि आते हैं, इन सभी को मिलाकर भारत में मोटा अनाज या मिलेट्स (Millets) कहते हैं। 

इन अनाजों को ज्यादातर पोषक अनाज भी कहा जाता है क्योंकि इन अनाजों में चावल और गेहूं की तुलना में 3.5 गुना अधिक पोषक तत्व पाए जाते हैं। मोटे अनाजों में पोषक तत्वों का भंडार होता है, जो स्वास्थ्य की दृष्टि से बेहद फायदेमंद होते हैं। 

मिलेटस में मुख्य तौर पर बीटा-कैरोटीन, नाइयासिन, विटामिन-बी6, फोलिक एसिड, पोटेशियम, मैग्नीशियम, जस्ता आदि खनिजों के साथ विटामिन प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। 

इन अनाजों का सेवन लोगों के लिए बेहद फायदेमंद होता है, इनका सेवन करने वाले लोगों को कब्ज और अपच की परेशानी होने की संभावना न के बराबर होती है। 

ये अनाज बेहद चमत्कारिक हैं क्योंकि ये अनाज विपरीत परिस्तिथियों में भी आसानी से उग सकते हैं, इनके उत्पादन के लिए पानी की बेहद कम आवश्यकता होती है। 

साथ ही प्रकाश-असंवेदनशीलता और जलवायु परिवर्तन का भी इन अनाजों पर कोई ख़ास प्रभाव नहीं पड़ता, इसलिए इनका उत्पादन भी ज्यादा होता है और इन अनाजों का उत्पादन करने से प्रकृति को भी ज्यादा नुकसान नहीं होता। 

आज के युग में जब पानी लगातार काम होता जा रहा है और भूमिगत जल नीचे की ओर जा रहा है ऐसे में मोटे अनाजों का उत्पादन एक बेहतर विकल्प हो सकता है क्योंकि इनके उत्पादन में चावल और गेहूं जितना पानी इस्तेमाल नहीं होता। 

यह अनाज कम पानी में भी उगाये जा सकते हैं जो पर्यावरण के लिए बेहद अनुकूल हैं। मोटे अनाजों का उपयोग मानव अपने खाने के साथ-साथ जानवरों के खाने के लिए भी कर सकता है, इन अनाजों का उपयोग भोजन के साथ-साथ, पशुओं के लिए और पक्षियों के चारे के रूप में भी किया जाता है। ये अनाज हाई पौष्टिक मूल्यों वाले होते हैं जो कुपोषण से लड़ने में सहायक होते हैं।

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मोटे अनाजों का उत्पादन देश में कर्नाटक, राजस्थान, पुद्दुचेरी, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश इत्यादि राज्यों में ज्यादा किया जाता है, क्योंकि यहां की जलवायु मोटे अनाजों के उत्पादन के लिए अनुकूल है और इन राज्यों में मिलेट्स को आसानी से उगाया जा सकता है, 

इसके साथ ही इन राज्यों के लोग अब भी मोटे अनाजों के प्रति लगाव रखते हैं और अपनी दिनचर्या में इन अनाजों को स्थान देते हैं। इसके अलावा इन अनाजों का एक बहुत बड़ा उद्देश्य पशुओं के लिए चारे की आपूर्ति करना है। मोटे अनाजों के पेड़ों का उपयोग कई राज्यों में पशुओं के चारे के रूप में किया जाता है, 

इनके पेड़ों को मशीन से काटकर पशुओं को खिलाया जाता है, इस मामले में हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश और पश्चिमी उत्तर प्रदेश टॉप पर हैं, जहां मोटे अनाजों का इस उद्देश्य की आपूर्ति के लिए बहुतायत में उत्पादन किया जाता है। 

मोटे अनाजों के कई गुणों को देखते हुए सरकार लगतार इसके उत्पादन में वृद्धि करने का प्रयास कर रही है। जहां साल 2021 में 16.93 मिलियन हेक्टेयर में मोटे अनाजों की बुवाई की गई थी, 

वहीं इस साल देश में 17.63 मिलियन हेक्टेयर में मोटे अनाजों की बुवाई की गई है। अगर वर्तमान आंकड़ों की बात करें तो देश में हर साल 50 मिलियन टन से ज्यादा मिलेट्स का उत्पादन किया जाता है।

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इन मोटे अनाजों में मक्के और बाजरे का शेयर सबसे ज्यादा है। ज्यादा से ज्यादा किसान मोटे अनाजों की खेती की तरफ आकर्षित हों इसके लिए सरकार ने लगभग हर साल मोटे अनाजों के सरकारी समर्थन मूल्य में बढ़ोत्तरी की है। इन अनाजों को सरकार अब अच्छे खासे समर्थन मूल्य के साथ खरीदती है। 

जिससे किसानों को भी इस खेती में लाभ होता है। बीते कुछ सालों में इन अनाजों के प्रचलन का ग्राफ तेजी से गिरा है। आजादी के पहले देश में ज्यादातर लोग मोटे अनाजों का ही उपयोग करते थे, लेकिन अब लोगों के खाना खाने का तरीका बदल रहा है, 

जिसके कारण लोगों की जीवनशैली प्रभावित हो रही है और लोगों को मधुमेह, कैंसर, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियां तेजी से घेर रही हैं। इन बीमारियों की रोकथाम के लिए लोगों को अपनी थाली में मोटे अनाजों का प्रयोग अवश्य करना चाहिए, जिसके लिए सरकार लगातार प्रयासरत है। 

मोटे अनाजों के फायदों को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन्हें 'सुपरफूड' बताया है। अब पीएम मोदी दुनिया भर में इन अनाजों के प्रचार के लिए ब्रांड एंबेसडर बने हुए हैं। 

"अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष 2023 की समयावधि तक कृषि मंत्रालय ने पूर्व में शुरू किए गए विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन और प्राचीन तथा पौष्टिक अनाज को फिर से खाने के उपयोग में लाने पर जागरूकता फैलाने की पहल" से सम्बंधित सरकारी प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (PIB) रिलीज़ का दस्तावेज पढ़ने या पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए, यहां क्लिक करें । 

पीएम नरेंद्र मोदी ने हाल ही में उज्बेकिस्तान के समरकंद में आयोजित हुए शंघाई सहयोग संगठन की बैठक को सम्बोधित करते हुए मोटे अनाजों को 'सुपरफूड' बताया था। 

उन्होंने अपने सम्बोधन में इन अनाजों से होने वाले फायदों के बारे में भी बताया था। पीएम मोदी ने शंघाई सहयोग संगठन के विभिन्न नेताओं के बीच अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिलेट्स फूड फेस्टिवल के आयोजन की वकालत की थी। 

उन्होंने बताया था की इन अनाजों के उत्पादन के लिए कितनी कम मेहनत और पानी की जरुरत होती है। इन चीजों को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार लगातार मोटे अनाजों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए और प्रचारित करने के लिए प्रयासरत है।

नीति आयोग ने बताए किसानों की कमाई को बढ़ाने के मूलमंत्र, बताया किस तरह बढ़ सकती है कमाई

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नीति आयोग के मुख्य कार्यपालक अधिकारी परमेश्वरन अय्यर ने कहा है, कि भारत में किसानों की आय बढ़ाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है, जिसके लिए सरकार लगातार प्रयास कर रही है। उन्होंने कहा कि किसानों को अब खेती के अलावा कृषि स्टार्टअप लगाने पर भी जोर देना चाहिए, जिससे किसानों के लिए रोजगार के नए साधन बन सकें। उन्होंने कहा कि फूड प्रोसेसिंग किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण सेक्टर साबित हो सकता है। जहां किसान निवेश करके प्रोसेस्ड प्रोडक्ट्स का निर्यात कर सकते हैं। उन्होंने एक सेमीनार को संबोधित करते हुए कहा कि भारत में फूड प्रोसेसिंग सेक्टर में एंट्री के लिए सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। उन्होंने आगे कहा कि फूड प्रोसेसिंग सेक्टर किसानों की आय को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है। साथ ही, यह भारत में कुपोषण के विरुद्ध लड़ाई में पोषण लक्ष्यों को हासिल करने में सहायक हो सकता है। सरकार ने इन चीजों को देखते हुए कई कदम उठाए हैं। जिससे खेतों के स्तर पर ही फूड प्रोसेसिंग उद्योग को बढ़ावा दिया जा सके। उन्होंने कहा कि आजकल खाद्य सुरक्षा के लिए बहुत ही ज्यादा कड़े मानक बनाए जा चुके हैं। इसलिए इसको वैश्विक स्तर पर बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है। सरकार खाद्य सुरक्षा में सुधार को लेकर लगातार प्रयत्न कर रही है।

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परमेश्वरन अय्यर ने कहा, साल 2023 को संयुक्त राष्ट्र ने 'इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स' (IYoM) घोषित किया है जो एक महीने से भी कम समय में शुरू होने जा रहा है। इसमें संयुक्त राष्ट्र मोटे अनाज के उत्पादन, प्रोसेसिंग और खाने के ऊपर जोर देगा। मोटे अनाज की प्रोसेसिंग न केवल रोजगार के लिहाज से बल्कि स्वास्थ्य के लिहाज से भी बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि मोटे अनाज के प्रोसेसिंग में सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों को लाने की भी जरूरत है। ये उद्यम इस क्षेत्र में ढेर सारे रोजगार पैदा कर सकते हैं। इनसे प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से किसानों को ही फायदा होने वाला है।
इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स (IYoM) 2023 योजना का सरकारी दस्तावेज पढ़ने या पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए, यहां क्लिक करें
अय्यर ने भारत में बनने वाले फूड प्रोसेस्ड उत्पादों के निर्यात पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि इससे बाजार में कच्चे माल की मांग बढ़ेगी जिससे किसान ज्यादा उत्पादन करेंगे। इसके साथ ही मांग बढ़ने के साथ ही किसानों को उनकी फसलों का उचित दाम भी मिल सकेगा। साथ ही उन्होंने भारत में खाद्य पदार्थों की बर्बादी पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि अब भी दुनिया में ऐसे लोग हैं, जिनके पास खाने के लिए पर्याप्त खाना नहीं है और वो गंभीर कुपोषण के शिकार हैं।
लाखों किसानों को सिखाए जाएंगे उन्नत खेती के गुण, होगा फायदा

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उत्तर प्रदेश में किसानों की आर्थिक मदद के लिए अब उन्हें उन्नत खेती के गुण सिखाए जाएंगे. इतना ही नहीं इंटरनेशनल मिलेट ईयर को सफल बनाने के लिए यूपी की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होने वाली है. साल 2023 में पूरी दुनिया इंटरनेशनल मिलेट ईयर पूरी दुनिया मना रही है. यह आयोजन भारत की पहल पर हो रहा है. इस आयोजन को सफल बनाने के लिए जोरों पर तैयारियां की जा रही हैं. हालांकि खेती उत्तर प्रदेश में ज्यादातर लोगों की रोजी रोटी का साधन है. उत्तर प्रदेश में दुनिया की सबसे ज्यादा उर्वरतम जमीन है. जोकि गंगेटिक बेल्ड का अधिकांश हिस्सा भी है. इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश में ना तो पानी की कमी है, और ना ही मानव संसाधन की, जिसके चलते यहां पर खेती की संभावना भी अच्छी है. उत्तर पदेश मात्र एक ऐसा राज्य है, जिसमें सिर्फ मात्र 11 रकबे का है, और 20 फीसद खाद्यान पैदा करता है. राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भी खेती बाड़ी में ज्यादा रूचि है. जिस वजह से अंतरराष्ट्रीय मिलेट को सफल बनाने के लिए यूपी की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर तैयारियां

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ क्र निर्देश के हिसाब से तैयारियां की जा रही हैं. इसके अलावा कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही के निर्देशों का पालन भी किया जा रहा है, उत्तर प्रदेश मिलेटस पुनरोद्धार कार्यक्रम को चलाने के पीछे की मंशा यही है कि, मिलेट्स से जुड़ी पोषण सम्बंधी खूबियों को लोगों तक पहुंचाएं. अच्छे स्वास्थ्य और पोषण सुरक्षा के लिए ज्यादा से ज्यादा लोग इनका किसी ना किसिया रूप से उपयोग उपभोग कर सकें.

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इस योजना के तहत मिलेट्स फसलों में जैसे ज्वार, बाजरा, कोदो, सवा की खेती को बड़े पैमाने में बढ़ावा देने के लिए उचित प्रयास किये जा रहे हैं. यूपी सरकार मिलेट्स पुनरोद्धार कार्यक्रम में करीब 186.27 करोड़ रुपये खर्चा कर रही है. साल 2021 से 2022 में कुल 10.83 लाख हेक्टेयर की एरिया में खास मिलेट्स फसलों का उत्पादन किया जाता है. इसमें बाजरा , ज्वार, कोदो और सावा का रकबा क्यों लाख हेक्टेयर में फैला हुआ है. यूपी की योगी सरकार ने साल 2026 से 2027 तक इनकी बुवाई का रकबा बढाकर तकरीबन 25 लाख हेक्टेयर करने का लक्ष्य तय किया है.

सरकार देगी फ्री में बीज

यूपी सरकार ने आने वाले चार सैलून में ढ़ाई लाख किसानों को फ्री में बीज देने का फैसल किया है. जिसके लिए वो 11.86 करोड़ रुपये भी खर्च करने वाली है. इतना ही नहीं मिलेट्स बीजों के उत्पादन के लिए सरकार की तरफ से साल 2023 से 2024 और साल 2026 से 2027 तक कुल 180 कृषक उत्पादक संगठनों को चार लाख रुपये प्रति एफपीओ (FPO) के हिअब से सीड मनी दी जाएगी. जिससे भविष्य में राज्य में मिलेट्स की तरह तरह की फसलों के बीज को स्थानीय स्तर पर किसानों को उपलब्ध करवा सकेंगे. इतना ही नहीं इस कार्यक्रम के लिए चार सालों में 7 करोड़ से भी ज्यादा की धन राशि खर्च की जाएगी.